देहरादून: मुख्य सचिव ने आयुष विभाग द्वारा एलोपैथिक चिकित्सकों को आयुर्वेद का प्रशिक्षण दिए जाने के सम्बन्ध में सम्बंधित अधिकारीयों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि एलोपैथी और आयुर्वेद को एक दूसरे के विरोधाभाषी के तौर पर न देख कर एक दूसरे के पूरक के रूप में देखना चाहिए।
मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने शुक्रवार को सचिवालय में हुई बैठक के दौरान कहा कि इस प्रशिक्षण का उद्देश्य यह होना चाहिए कि एलोपैथिक चिकित्सकों के मन में जो आयुर्वेद को लेकर विरोधी मानसिकता और शंकाएं हैं, उन्हें दूर किया जा सके। उन्होंने कहा कि एलोपैथिक चिकित्सकों को आयुर्वेद के प्रशिक्षण के दौरान तथ्यों एवं आवश्यक दस्तावेजों के साथ प्रस्तुतिकरण दिया जाए।
मुख्य सचिव ने कहा कि आयुर्वेद को मात्र एक चिकित्सा पद्धति के रूप में न देखते हुए एक जीवन शैली के रूप में देखना चाहिए। यह मात्र बीमारियों का इलाज ही नहीं करती बल्कि आयुर्वेद को अपनाकर हम अपने शरीर को बीमारियां होने से रोक भी सकते हैं। इसे हमारी दिनचर्या का हिस्सा बनाने के लिए इसके प्रभावों और होने वाले लाभों को आमजन तक पहुंचाना होगा।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के विकास से उत्तराखण्ड को विभिन्न प्रकार से लाभ हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऋषिकेश पूरे विश्व में योग के लिए जाना जाता है। योग और आयुर्वेद उत्तराखण्ड की आर्थिकी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसे अधिक से अधिक बढ़ावा दिया जाए।
बैठक में बताया गया कि आयुष विभाग शीघ्र ही एलोपैथिक चिकित्सकों के लिए 6 दिवसीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से सम्बन्धित प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत आयुर्वेद के सम्बन्ध में तथ्यों और सबूतों के माध्यम से बहुत सी भ्रांतियां दूर की जाएंगी। प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन उत्तराखण्ड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी के माध्यम से किया जायेगा।
इस अवसर पर सचिव डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय एवं आर. राजेश कुमार सहित उत्तराखण्ड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी और एचएनबी उत्तराखण्ड मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधि उपस्थित रहें।