देहरादून: उत्तराखंड के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं भारतीय चिकित्सा परिषद के बोर्ड सदस्य डाॅ. महेंद्र राणा ने उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि सरकार अविलम्ब प्रस्ताव बनाकर अनुच्छेद-371 में प्रावधान कराए। जिसमें हिमांचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी रोजगार एवं भूमि पर केवल राज्य के निवासियों का अधिकार हो। दूसरे राज्यों के लोगों द्वारा की जा रही जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगाई जाए।
यह लड़ाई उत्तराखंड के जल-जंगल-जमीन, संस्कृति, रोटी-बेटी और हक हकूक की लड़ाई है। भू-कानून का सीधा-सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है, यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न की किसी और का है।
जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे, वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी। इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाए, जिसका नाम उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संशोधन का विधेयक था, इसे विधानसभा में पारित किया गया, इसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई।, यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था। साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई ।इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी।
डा. राणा ने चिंता जताते हुए कहा कि यदि शीघ्र पूर्ववर्ती खंडूरी सरकार एवं कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया भू कानून राज्य में पुनः लागू नही किया गया तो हमारा यह छोटा सा राज्य भू मफियाओं एवं बाहरी अराजक तत्वों की गिरफ्त में आ जाएगा।