राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का उत्तराखंड के दौरे का बुधवार को दूसरा दीन था। वहीं अपने दौरे के दूसरे दिन वह इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून में प्रशिक्षणरत व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के भारतीय वन सेवा के परिवीक्षार्थियों के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई। इस दौरान राष्ट्रपति ने परिवीक्षार्थियों को प्रमाण पत्र और पदक देकर सम्मानित किया। साथ ही उन्होंने भारतीय वन सेवा के 2022 बैच के सभी प्रशिक्षु अधिकारियों को बधाई दी और कहा कि इस बैच में 10 महिला अधिकारी हैं। महिलाएं समाज के प्रगतिशील बदलाव की प्रतीक हैं।
वहीं राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय वन अकादमी की पर्यावरण के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जिसमें भारतीय वन सेवा के अधिकारियों पर जंगलों के संरक्षण, संवर्धन एवं पोषण की जिम्मेदारी है। साथ ही उन्होंने आशा की कि ये अधिकारी अपने इस अप्रतिम दायित्व के प्रति सजग और सचेत होंगे एवं पूर्ण निष्ठा से अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करेंगे। उन्होंने कहा की हमारी प्राथमिकताएं मानव केंद्रित होने के साथ ही प्रकृति केंद्रित भी होनी चाहिए। इसके लिए पृथ्वी की जैव-विविधता एवं प्राकृतिक सुंदरता का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है, जिसे हमें अति शीघ्र करना है।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने कहा कि वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के जरिए मानव जीवन को संकट से बचाया जा सकता है। वहीं उन्होंने कहा कि भारतीय वन सेवा के पी. श्रीनिवास, संजय कुमार सिंह, एस. मणिकन्दन जैसे अधिकारियों ने अपनी ड्यूटी के दौरान कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए प्राण न्योछावर कर दिए हैं। वहीं अभी तक देश को भारतीय वन सेवा ने बहुत अधिकारी दिये हैं, जो पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य कर रहे हैं। आज उनकी चर्चा बहुत सम्मान से की जाती है। राष्ट्रपति ने कहा उन सभी को आप अपना रोल मॉडल बनाएं एवं उनके दिखाए आदर्शों पर आगे बढ़ें।
वहीं साथ ही राष्ट्रपति ने कहा कि विकास-रथ के दो पहिये होते हैं – परंपरा और आधुनिकता। आज पूरा मानव समाज पर्यावरण संबंधी कई समस्याओं को झेल रहा है। इसके प्रमुख कारणों में से एक हैं विशेष प्रकार की आधुनिकता।, जिसके मूल में प्रकृति का शोषण है। इस प्रक्रिया में पारंपरिक ज्ञान को उपेक्षित किया जाता है। वहीं देश के जनजातीय समाज ने प्रकृति के शाश्वत नियमों को अपने जीवन का आधार बनाया है। क्योंकि जनजातीय जीवन शैली मुख्यतः प्रकृति पर आधारित होती है। ये लोग प्रकृति का संरक्षण भी करते हैं। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सदियों से जनजातीय समाज द्वारा संचित ज्ञान के महत्व को समझा जाए और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए उसका उपयोग किया जाए। इसलिए भारतीय वन सेवा के सभी अधिकारियों को भारत के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं संवर्धन ही नहीं करना है, बल्कि परंपरा से संचित ज्ञान का मानवता के हित में उपयोग करना है।
दूसरी तरफ मौके पर मौजूद राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि) ने इस अवसर पर कहा कि यह समारोह हमारे राष्ट्रीय वन धरोहर के संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में नए योग्य नेतृत्व का उत्थान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। वहीं उन्होंने कहा कि भारतीय वन्य जीवन और वन्यजीव अध्ययन में उत्कृष्टता के लिए एक प्रमुख संस्था के रूप में, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी ने अपने क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संस्था ने वन्य जीवन के प्रबंधन, और संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्टता के मानकों को स्थापित करने के साथ ही नए अधिकारियों को प्रशिक्षित किया है।
प्रदेश के राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड, हिमालय की गोद में बसा हुआ है, जोकि प्राकृतिक सौंदर्य की एक अतुलनीय धरोहर प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड अपनी समृद्ध और विविध वन संपदा के लिए जाना जाता है। हमारे राज्य की प्रमुख संपत्ति इसके वन हैं, जो बहुत समृद्ध जैव विविधता का घर हैं। इसके अलावा, उत्तराखंड जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों की कई दुर्लभ प्रजाति यहाँ मिलती है। यही नही बल्कि उत्तराखण्ड के आम जन मानस वनों को देवतुल्य स्थान देते हुए इन्हें पूजते हैं, इसलिए वनसंरक्षण के मामले में हमारा राज्य देश के अग्रणी राज्यों में शामिल है।
वहीं राज्यपाल लेफ्टिनेंट गुरमीत सिंह ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके भारतीय वन सेवा सभी अधिकारी राष्ट्र की पारिस्थितिक सुरक्षा की रक्षा करने के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं तथा संरक्षण की अनिवार्यताओं को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
इस दीक्षांत समारोह के दौरान मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, वन महानिदेशक और विशेष सचिव जितेन्द्र कुमार, इंदिरा गॉधी राष्ट्रीय वन अकादमी के निदेशक जगमोहन शर्मा एवं अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।