देहरादून: विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर द्वारा एलएसी मुद्दे पर दिए बयान के बाद से सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने उनके बयान को लेकर जुबानी हमले किए हैं। इसी बीच एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी विदेश मंत्री पर हमला बोला है।
ओवैसी ने विदेश मंत्री से सवाल किया कि अगर सरकार के पास कुछ भी छुपा नहीं है तो वह संसद में बहस से भाग क्यों रही है?
ओवैसी ने अपने सिलसिलेवार ट्वीट में लिखा कि अगर चीन सीमा संकट पर सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर, संसद में बहस और चर्चा से क्यों भाग रहे हैं? इस विषय पर मेरे सवालों का खंडन क्यों किया जा रहा है? मीडिया को वहां क्यों नहीं ले जाया जा रहा है?
जयशंकर के तर्क को हास्यास्पद और अप्रासंगिक करार देते हुए ओवैसी ने कहा कि जयशंकर पीएम की ‘न कोई घुसा था न कोई घुसा है..’ की लाइन पर चल रहे हैं।
ओवैसी ने कहा कि सरकार सच्चाई से डरती है चाहे वह “चीन के साथ लद्दाख संकट” के गुजरात दंगों पर हो। “विदेश मंत्री की धौंस और झांसा चीन के साथ सीमा संकट को हल नहीं करेगा। इसे ईमानदारी और सच्चाई को स्वीकार करने की इच्छा की आवश्यकता है। मंत्री ने आज फिर दिखाया है कि मोदी सरकार सच्चाई से डरती है, चाहे 2002 के गुजरात नरसंहार पर या फिर चीन के साथ लद्दाख संकट हो।
बता दें, विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में कहा था कि भारत सरकार रक्षात्मक है, उदार होने के नाते … भारतीय सेना को एलएसी पर किसने भेजा? राहुल गांधी ने उन्हें नहीं भेजा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भेजा।
कुछ पश्चिमी मीडिया और गैर सरकारी संगठनों द्वारा भारत विरोधी बयानों पर विदेश मंत्री ने कहा कि वे (चीन) पैंगोंग त्सो में पुल बना रहे थे। वह क्षेत्र चीन के अधीन कब आया? चीनी पहली बार 1958 में वहां आए और 1962 में कब्जा कर लिया। मोदी सरकार को 2023 में एक पुल के निर्माण के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जो 1962 में कब्जा कर लिया गया था? आपके पास यह कहने के लिए ईमानदारी नहीं है कि यह कब हुआ?