उत्तरकाशीः राजधानी देहरादून में शुक्रवार 24 सितंबर यानी आज से होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सेब महोत्सव 2021, का उपला टकनौर सीमांत क्षेत्र हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों ने विरोध किया है। विरोध की वजह उन्होंने सरकार सहित विभागीय अधिकारियों पर क्षेत्र के सेब काश्तकारों की अनदेखी बताया है। जिसको लेकर क्षेत्र के आठ गांव के सेंब काश्तकारों ने अपना सेब अंतर्राष्ट्रीय सेब महोत्सव में शामिल नहीं करने का निर्णय लिया है। उन्होंने इस संबध में मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन भेजा है। इसके अलावा उन्होंने मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र देकर गरतांग गली में वन विभाग द्वारा लिए जाने वाले शुल्क को क्षेत्रीय लोगों के लिए कम करने की भी मांग की है।
उपला टकनौर हर्षिल घाटी क्षेत्र के सेब काश्तकारों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सेब महोत्सव 21 के विरोध के चलते उन्होंने जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजे गये ज्ञापन में सरकार पर अनदेखी करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार द्वारा झाला स्थित कोल्ड स्टोर भी अब तक शुरु नहीं करवाया गया है। जिसके कारण सेब काश्तकारों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। वहीं जंगली जानवर जिसमें मुख्य भालू, लंगूर, तोता लगातार दशकों से सेब के पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जिस पर बार बार संबंधित विभाग के अधिकारियों को अवगत कराने के बावजूद भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
क्षेत्र के सेब काश्तकारों ने वन विभाग व उद्यान विभाग के अधिकारियों पर अनदेखी का अरोप लगाते हुए कहा है कि, काश्तकारों ने कई बार उनके सम्मुख मांग रखी है कि उनके लिऐं एआईडीआर (एनिमल डिटेक्शन इंन्ट्रूजन एण्ड रिप्लैंट सिस्टम) मुहैया कराया जाय। परंतु उनके द्वारा उनकी मांग पर किसी प्रकार का कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
सेब काश्तकारों ने इन सभी मांगों को सीएम के सम्मुख रखते हुए कहा है कि यही वजह है हर्षिल घाटी के सेब कास्तकारों को अंतर्राष्ट्रीय सेब महोत्सव का विराध करने को विवश होना पड़ा। उन्होंने प्रेषित सभी मांगों को पूर्ण करने की मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है।
इसके अलावा सेब काश्तकारों ने मुख्यमंत्री को भेजे एक अन्य पत्र के में कहा है कि वन विभाग द्वारा गरतांग गली में पर्यटकों सहित स्थानीय लोगों से 150 रुपये का शुल्क लिया जाता है। उन्होंने सीएम से मांग की है कि हर्षिल घाटी के आठ गांवों के लोगों के लिए यह शुल्क 50 से 60 रुपये किया जाय। साथ ही स्थानीय भावनाओं को ध्यन मे रखते हुए गरतांग गली का इतिहास स्थानीय अनुरुप में लिखा जाय. ताकि सही जानकारी पर्यटकों को मिल सके।