चंपावत (उत्तराखंड):
उत्तराखंड की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ देखने को मिला जब चंपावत विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समर्थन में सार्वजनिक रूप से नारे लगाए। यह घटना चंपावत जिले में उस समय घटी जब मुख्यमंत्री धामी एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। सभा के दौरान अचानक विधायक बिष्ट ने ‘पुष्कर सिंह धामी ज़िंदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए और वहां मौजूद जनता को भी इन्हीं नारों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने न केवल राजनीतिक हलकों को चौंका दिया बल्कि राज्य में दलगत राजनीति की परंपरागत सीमाओं को भी चुनौती दी। मदन बिष्ट, जो कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माने जाते हैं, उनके इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है। आमतौर पर एक विपक्षी दल के विधायक द्वारा सत्ता पक्ष के मुख्यमंत्री का इस तरह खुलेआम समर्थन करना दुर्लभ माना जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम राज्य की राजनीति में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह दर्शाता है कि राज्य के नेता अब विकास और जनहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचने लगे हैं। कई जानकारों ने इस घटना को उत्तराखंड में राजनीतिक परिपक्वता का प्रतीक बताया है, जहां जनता की भलाई को प्राथमिकता दी जा रही है।
कांग्रेस पार्टी में मिली-जुली प्रतिक्रिया
हालांकि, कांग्रेस पार्टी के भीतर इस पर मतभेद देखने को मिले हैं। कुछ नेताओं ने इसे विधायक मदन बिष्ट का व्यक्तिगत निर्णय करार दिया है और कहा है कि वे अपने क्षेत्र की जनता के विकास को लेकर प्रतिबद्ध हैं। वहीं, पार्टी के अन्य नेताओं ने विधायक की इस पहल को पार्टी लाइन से हटकर उठाया गया कदम बताया और असहमति जाहिर की।
मुख्यमंत्री धामी ने जताया स्वागत
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधायक मदन बिष्ट के समर्थन को सकारात्मक रूप में लिया और इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “राज्य के विकास के लिए सभी दलों के जनप्रतिनिधियों का सहयोग आवश्यक है। जब हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे, तभी उत्तराखंड को विकसित राज्यों की श्रेणी में लाया जा सकेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की एकजुटता से जनता को सीधा लाभ मिलेगा।
नई राजनीतिक दिशा की ओर संकेत
यह घटना उत्तराखंड की राजनीति में सहयोग और सौहार्द की नई दिशा की ओर इशारा करती है। जहां अब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ जनहित और विकास के मुद्दों पर एकजुटता की भावना प्रबल होती दिख रही है। मदन बिष्ट का यह कदम भविष्य में अन्य नेताओं को भी इसी दिशा में सोचने के लिए प्रेरित कर सकता है।
इस घटनाक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि जब बात जनता के हितों की हो, तो राजनीतिक दलों की दीवारें बेमानी हो जाती हैं और नेताओं की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ राज्य का विकास बन जाती है।