धराली में तबाही के बाद विस्थापन अनिवार्य, भू-वैज्ञानिकों ने दी नई जगह बसाने की सलाह

उत्तरकाशी। उत्तराखंड के धराली गांव में आई भीषण बाढ़ ने जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। बाढ़ की विभीषिका इतनी भयावह रही कि घर, दुकानें, खेत और बुनियादी ढांचा सब कुछ मलबे में तब्दील हो गया। राहत और बचाव दल अब भी ग्राउंड जीरो पर सर्च ऑपरेशन में जुटे हुए हैं। इस बीच, भू-वैज्ञानिकों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि मौजूदा स्थान पर दोबारा बस्ती बसाना खतरे से खाली नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया है कि धराली को पूरी तरह किसी सुरक्षित स्थान पर पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए।

नई जगह पर पुनर्वास की सिफारिश
भूगर्भ सर्वेक्षण संस्थान के पूर्व भू-वैज्ञानिक जे.एस. रावत ने कहा कि धराली की मौजूदा भौगोलिक स्थिति और चट्टानों की संरचना को देखते हुए यहां स्थायी रूप से रहना भविष्य में बड़े खतरे को न्योता देना होगा। उनके अनुसार, डाउनस्ट्रीम में भागीरथी नदी के बाएं तट पर उपयुक्त और सुरक्षित जगह की तलाश के लिए तत्काल सर्वे कराया जाना चाहिए। रावत ने बताया कि धराली के आसपास ग्रेट हिमालयन हाई-ग्रेड मेटामाफिक चट्टान मौजूद है, जो खीर गंगा के दोनों ओर पाई जाती है, जिससे नई सुरक्षित जगह तलाशना आसान हो सकता है।

भूगर्भीय सर्वेक्षण को अनिवार्य बनाने की मांग
जे.एस. रावत ने राज्य सरकार को सलाह दी कि बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को छोड़कर अन्य किसी भी निर्माण—चाहे वह सड़क हो, पहाड़ी ढलान पर बस्ती बसाना हो, या नदी-नालों के किनारे इमारत खड़ी करना हो—के लिए तकनीकी और भूगर्भीय सर्वेक्षण अनिवार्य किया जाए। उन्होंने “लो इनेक्ट” जैसे नियम लागू करने की जरूरत बताई, जिसके तहत भूगर्भीय अध्ययन के बिना कोई भी निर्माण नहीं हो सकेगा और उल्लंघन करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

ग्लेशियर निगरानी प्रणाली की आवश्यकता
भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तराखंड में सबसे अधिक बर्फीली पर्वतमालाएं और ग्लेशियर हैं, इसलिए यहां उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों की नियमित निगरानी के लिए आधुनिक सिस्टम विकसित करना जरूरी है। यह न केवल आपदा जोखिम को कम करेगा, बल्कि भविष्य में समय रहते चेतावनी जारी करने में भी मदद करेगा।

आपदा पीड़ितों को राहत राशि
प्रशासन ने अब तक बेघर हुए ग्रामीणों को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता और आहेतुक मद में पांच-पांच हजार रुपये प्रदान किए हैं। साथ ही, प्रभावित परिवारों को आवश्यक वस्तुएं भी दी जा रही हैं। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि अब वे स्थायी रूप से सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास चाहते हैं, ताकि दोबारा अपना जीवन सुरक्षित माहौल में शुरू कर सकें।