बसपा सुप्रीमो ने धामी सरकार के मजारों को तोड़ने के फैसले को बताया पक्षपात पूर्ण कार्यवाही

देहरादून: उत्तराखंड में बीते कुछ दिनों से लव जिहाद और लैंड जिहाद के मुद्दों ने जिस तेजी से गति पकड़ी है वह किसी खास मकसद के लिए तैयार किया गया मॉड्यूल है। यह सवाल इसलिए अहम है कि क्योंकि इन मुद्दों को लेकर अब हिंदू-मुस्लिम आमने सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं। लव जिहाद की नित नई वारदातों का सामने आना और फिर उनका इतना तूल पकड़ना कि राज्य की कानून व्यवस्था को खतरा पैदा हो जाए और प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल खराब होने की आशंकाएं जताई जाने लगे तो ऐसी स्थिति अचानक पैदा नहीं हो सकती।

खास बात यह है कि जितनी तेजी से घटनाक्रम सामने आ रहा है उतनी ही तेजी से और राष्ट्रीय नेताओं की क्रिया प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। भले ही मुख्यमंत्री धामी ने लैंड जेहाद के खिलाफ जो कार्यवाही राज्य में शुरू की गई थी वह धार्मिक स्थलों की आड़ में सरकारी जमीनों से कब्जे हटाने और राज्य के जनसांख्यिकीय असंतुलन को रोकने के मद्देनजर की गई थी लेकिन इस कार्यवाही के दौरान मजारों के खिलाफ की गई कार्रवाई को एक पक्ष या समुदाय विशेष के खिलाफ कार्यवाही माना जा रहा है।

मंगलवार को मायावती ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए धामी सरकार के इस फैसले को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर मजारों या किसी धर्म विशेष के धार्मिक स्थलों को तोड़ा जाना गलत है। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब सरकारी जमीनों पर यह मजारे बनाई जा रही थी तब सरकार कहा थी। सरकार ने तब मजारों को बनने से क्यों नहीं रोका।

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